मै अलग हुं,क्यों की
चाहे कितनी बार भी तोड़ लो मुझे, फिर से जुड़ जाती हूं
चाहे कितनी बार भी गिरा दो मुझे, उठके खड़ी हो जाती हूं
मैं अलग हूं क्यूं की
कोई सीमा में बंधती नहीं, कभी रुक जाती नहीं
कोई दूर करदे दिल से, फिर भी उसे भूलती नहीं
मैं अलग हूं,हां कुछ तो अलग हूं।
जिन्दगी छल और मौत सच है
जिन्दगी दर्द और मौत आनंद है
दोनों से ही हम बेखबर है
माया के खातिर मोक्ष से दूर है।
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बहूत मुस्कील नहीं है रिश्तों को निभा जाना
अपनों की गलतियों को नजरअंदाज करलो
और खुद की गलतियों को सुधार लो
आसान हो जाता है फिर रिश्तों का मान रखना।
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कहते हैं, वर्तमान में जियो
पर कहां है हम वर्तमान में
जीवन इस बालू घड़ी की तरह है
अतीत से निकले तो भविष्य में पहुंचे
भविष्य कब अतीत बन जाए पता ना चले
वक्त रैत की तरह फिसलती जाए
और मुठ्ठी में बस चंद अनुभव ही आए।
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इंतजार है मुझे उस दौर का
जब कलियां आंगन में ही नहीं
बगीचों में भी बेजीझक खिल खिलाएंगे।
इंतजार है मुझे उस दौर का
जब बेटियां कथा और चित्र में ही नहीं
हक़ीक़त में भी बेखौफ मुस्कुराएंगे।
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हाथ से छूटती रेत है ये समय की धारा
हर पल मे छुपा जिन्दगी का रंग सुनहरा
मत सोच इतना समेट ले जितना भी हो सके
नहीं तो मुठ्ठी खाली रह जाएगा तेरा।
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दिल छोटा मत कीजिए
क्यूं की....
आरंभ का कोई आरंभ नहीं होता,
और जब तक अंत सुखद ना हो वो अंत नहीं होता।
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अधूरा सा है हर कोई यहां
क्यूं किसी से कोई उम्मीद रखें
चांद को हासिल है सारा आसमां
फिर भी कुछ पल ही वो पूरा हो सके
खुद से ही हार मेरी खुद से ही जीत
अब खुद की खोज में निकलना है मुझे
छोटा ही सही मगर अपना तो हो
ऐसा एक मंजिल पाना है मुझे।
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थक कर अभी से तु रुक मत जाना
चाहे कांटो भरा हो सफर या हो सुहाना
एक बार ही मिलती है अनमोल ये जिन्दगी
जिसमे रहे सदा खुदा की बंदगी
आसमां में चाहे दूर तक हो उड़ान तेरी
जमीं से जुड़ा है तू ये कहीं भूल मत जाना।
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मिट जाने से पहले जी भर के जी लेना है
आसमां को एक बार छु लेना है
गम की रेत में से खुशी को ढूंढ लेना है
बेफिक्री की तारे मुठ्ठी भर तोड़ लाना है
बस इतनी सी ख्वाइशों को पूरा करना है
मिट जाने से पहले जी भर के जी लेना है।
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मैं वो राही हूं, जिसकी कोई मंजिल नहीं
फिर भी हौसले में कोई कमी भी नहीं
ले चले कदम चाहे जिस और मुझे
बस सफर है वहीं और मंजिल भी वही।
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बाहर से सब ठीक है मगर, भीतर से सब खोखले हैं
यूं तो भीड़ में रहते है हम, फिर भी कितने अकेले हैं
ख़ुशी का छलावा करते है हम, औरों को ठगने के लिए
मगर दिल ही जानता है हम, खुद से छल ही करते हैं।
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जाने ये उलझन कैसी है
कैसी ये बेबसी है,
दर्द के तूफान से घायल है दिल
जुबान पर फिर भी खामोशी है।
कौन है अपना कौन पराया
खुद से लढ़ती खुशी है,
जाने कब हसें जाने कब रोएं
कैसी ये बेबसी है।
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