मजबूरियों से बंधे हैं सब
अब किसी से क्या उम्मीद किया जाए
अजनबी शहर में अपना तो कोई ना था
फिर क्यों अपनी आंसू जाया किया जाए।कहां कहां से समेटू तुझे ऐ जिंदगी,
जिधर भी देखूं तू बिखरी पड़ी है
सवाल ये नही की सवाल कठिन है
हैरत तो ये है की....
हर एक कदम पे मेरी इम्तिहान खड़ी है।
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समंदर भी करीब था
और प्यास भी जोरों की थी
उलझन तो तब हुई....
जब पांवों रुकने को मजबूर थे
और समंदर को बेढ़ीओं ने जकड़े थे।
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थक कर अभी से तु रुक मत जाना
चाहे कांटो भरा हो सफर या हो सुहाना
एक बार ही मिलती है अनमोल ये जिन्दगी
जिसमे रहे सदा खुदा की बंदगी
आसमां में चाहे दूर तक हो उड़ान तेरी
जमीं से जुड़ा है तू ये कहीं भूल मत जाना।
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मिट जाने से पहले जी भर के जी लेना है
आसमां को एक बार छु लेना है
गम की रेत में से खुशी को ढूंढ लेना है
बेफिक्री की तारे मुठ्ठी भर तोड़ लाना है
बस इतनी सी ख्वाइशों को पूरा करना है
मिट जाने से पहले जी भर के जी लेना है।
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