एक समय की बात है, एक स्वार्थी आदमी था जिसका नाम रमेश
है। उसको सब कुछ अपना ही पसंद था। उसने किसी के साथ अपनी सामग्री साझा नहीं की, न की अपने
दोस्तों से और न किसी गरीब से।
एक दिन, उस रमेश ने तीस सोने के सिक्के खो
दीं। उसने अपने दोस्त बिनोद के घर जाकर
बताया कि उसने अपनी सोने की सिक्कें कैसे खो दीं। बिनोद एक दयालु आदमी था। जब बिनोद
की बेटी लता एक काम से लौट रही थी, तो उसने तीस सोने की सिक्कें पाईं।
जब वह घर पहुंची, उसने अपने पिताजी को बताया कि उसने क्या पाया है।
बिनोद ने लता से कहा कि ये सोने की सिक्कें उसके दोस्त को हैं, और फिर, बिनोद
ने रमेश को वो सिक्के लेने केलिए बुलाया। जब रमेश पहुंचा, तो बिनोद ने
उससे कहा,”मेरी बेटी ने तीस सोने की सिक्कें पाईं है, ये सिक्के शायद
तुम्हारे हैं, तुम इसे रख लो।“ सोने
की सिक्कों को गिनने के बाद, रमेश ने कहा,”इसमें से दस सिक्के
गायब हैं, और उन्हें तुम्हारे
बेटी ने ले लिए हैं, क्योंकि मेरे पास
चालीस सोने की सिक्कें थीं।“ उसने और भी कहा कि बाकी सिक्के
बिनोद से वो ले कर ही रहेगा। लेकिन लता ने इस बात से इनकार किया और कहा की उसे
सिर्फ तीस सोने के सिक्के ही मिले थे।
रमेश ने सोने की सिक्कों को वोहीं छोड़ दिया और
वह थाने में गुहार लगाया। वोहाँ पुलिस ने लता और उसके पिता बिनोद को बुलवाया, जब वे पहुंचे, तो पुलिस ने लता
से पूछा कि उसने कितनी सोने की सिक्कें पाईं थी। लता ने जवाब दिया, "तीस सोने की
सिक्कें"। पुलिस ने फिर रमेश से पूछा कि उसने कितनी
सोने की सिक्कें खोईं हैं, और उसने जवाब दिया, "चालीस सोने की सिक्कें"।
पुलिस ने फिर उस रमेश को बताया कि वो सोने की
सिक्कें उसकी नहीं हैं क्योंकि लता ने तीस सोने की सिक्कें पाईं हैं और वह चालीस
का दावा कर रहा है। पोलिस ने लता से कहा कि वह सोने की सिक्कें ले जाए क्यूँ की ये
सिक्के रमेश के नही है।
पुलिस ने फिर रमेश को कहा कि अगर कोई यह रिपोर्ट
करता है कि उसने चालीस सोने की सिक्कें पाई हैं तो वह उससे बुलवा दंगे। तब रमेश ने
माना कि उसने लालच में झूठ बोला था और उसने तीस सोने की सिक्कें हि खोए थे। लेकिन पुलिस ने उसकी बातों को नहीं
सुना।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमेशा ईमानदार रहना
चाहिए क्योंकि झूठ और लालच से किसीका भला नहीं होता।
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